लीवर का प्रत्यारोपण
लीवर एक महत्वपूर्ण अंग है जो पाचन-प्रणाली से आनेवाले रक्त को संपूर्ण शरीर में संचलन किये जाने के पूर्व संशोधित करता है। यह उसमें मौजूद रासायनिकों का डिटॉक्स करता है , दवाओं का चयापचन करता है एवं मज्जा विकसित करने ,संक्रमण के प्रतिरोध तथा रक्त स्कंदन के लिए आवश्यक प्रोटीन का संश्लेषण करता है।
लीवर का प्रत्यारोपण क्या है एवं इसकी आवश्यकता कब होती है ?
लीवर का प्रत्यारोपण एक शल्यक्रिया है जिसके द्वारा अस्वस्थ लीवर को निकाल कर उसके नियत स्थान पर दूसरे स्वस्थ लीवर को प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। लीवर के प्रत्यारोपण पर तभी विचार किया जाता है जब वह ठीक तरीके से कार्य नहीं कर रहा हो । वयस्कों में, यकृत प्रत्यारोपण का सबसे आम कारण सिरोसिस है और बच्चों में, यह पित्त की पथरी है। अन्य स्थितियों में वायरल हैपेटाइटिस, यकृत कैंसर और वंशानुगत रोग हैं।
प्रतिरोपण दल
लीवर के प्रत्यारोपण की उपयुक्तता को सुनिश्चित करने के लिए विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञों की अनिवार्यता होती है। दल में सम्मिलित सदस्य निम्न प्रकार हैं:
- लीवर के विषेशज्ञ (हेपाटोलॉजिस्ट)
- शल्य-चिकित्सक
- प्रत्यारोपण संयोजक
- नूट्रिशनिस्ट
- फिजियोथेरेपिस्ट
- मनोरोग चिकित्सक
- निश्चेतक विशेषज्ञ
लीवर के प्रत्यारोपण हेतु आदर्श अस्पताल से संबद्ध जाँच तालिका
- शल्य-चिकित्सा के लिए कुशल कीटाणुरहित उपायों की आवश्यकता होती है एवं इसीलिए लैमिनार-फ्लो के साथ एक पृथक ओ.टी व्यवसथा की भी अनिवार्यता होती है।
- लीवर की शल्यक्रिया के लिए 320 स्लाइस एंजियोग्राफी एवं वोलुमेट्री,ऑर्गन बीम जैसी अत्याधुनिक तकनीक का प्रयोग लीवर को विभाजित करने वाले सी.यू.एस.ए एवं जेट टी.एम जैसे उपकरणों के संयोजन में किया जाता है।
- ब्लड-बैंक सुविधा की 24 घंटे उपलब्धता ।
- गुर्दा-प्रत्यारोपण से संबद्ध रोगियों की जाँच हेतु-दोनों ही दाता एवं प्रापक के लिए- रोग निदान एवं प्रतिरक्षा विज्ञान संबंधी विशिष्ट सुविधाएं।
- समर्पित हेपैटोबीलियरी क्रिटिकल केयर युनिट, कॉल पर उपलब्ध एक हेपैटोबीलियरी चिकित्सक , निश्चेतक क्रिया कर्मचारी एवं विशिष्ट नर्सिंग दल
गुर्दा प्रत्यारोपण शल्यक्रिया
जीवित गुर्दा दाता प्रतिरोपण में स्वस्थ जीवित प्रदाता के लीवर में से एक भाग को निकाल कर प्रापक में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। यह लीवर की व्यापक क्रियात्मक आरक्षित क्षमता(70%) तथा उसकी पुर्नजीवित हो सकने की अद्भुत क्षमता के कारण मात्र ही संभव हो पाता है।
दोनो ही दाता एवं प्रापक के गुर्दे कुछ ही हफ्तों में पुन: सामान्य आकार प्राप्त कर लेते हैं। किसी मृत प्रदाता गुर्दा प्रत्यारोपण में, दाता वह रोगी होता है जिसके दिमाग ने स्थायी एवं अपरिवर्तनीय रूप से कार्य करना बंद कर दिया है। निकटतम संबंधी की अनुज्ञा से मृत रोगी के अन्य अंगो के साथ ही लीवर को भी दान कर दिया जाता है।
लीवर प्रत्यारोपण शल्यक्रिया में सामान्यत: 6 से 10 घंटे लगते हैं। अस्वस्थ लीवर को प्रदत्त लीवर द्वारा प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। नए लीवर के प्रत्यारोपण के पूर्व शल्य चिकित्सक द्वारा अस्वस्थ लीवर को पित्त नलिकाओं एवं रक्त वाहिनियों से पृथक कर दिया जाता है।
लीवर के प्रत्यारोपण उपरांत अनुवर्ती देख-भाल हेतु सामान्य प्रकार्य तथा शरीर द्वारा बहिष्करण रोकने के लिए अस्पताल तथा घर पर दवाओं का प्रयोग किया जाता है। मरीज आमतौर पर एक सफल लीवर प्रत्यारोपण के बाद अपने काम, सामाजिक और पारिवारिक जीवन में लौट आते हैं।
किसी व्यक्ति को गुर्दा–प्रत्यारोपण की आवश्यकता कब होती है?
लीवर के रोग की किसी गंभीर स्थिति में उसके प्रत्यारोपण की अनिवार्यता विभिन्न कारणों से हो सकती है। वयस्को में लीवर प्रत्यारोपण का सबसे आम कारण सिरोसिस है। सिरोसिस वह अवस्था होती है जिसमें लीवर का धीरे-धीरे क्षय हो जाता है एवं किसी पुराने घाव के कारण वह कार्य करना बंद कर देता है। लीवर में स्वस्थ ऊतकों का स्थान क्षतिग्रस्त ऊतक ले लेते हैं, जिसके फलस्वरूप उसमें रक्त प्रवाह बाधित हो जाता है। हेपाटाइटिस बी एवं सी जैसे विषाणुओं द्वारा,मद्य द्वारा,लीवर के ऑटो इम्यून रोग द्वारा,लीवर में वसा के बढ़ने से तथा लीवर के आनुवांशिक रोगों द्वारा सिरोसिस हो सकती है। अत्यधिक मद्यपान के कारण जिन व्यक्तियों में लीवर की सिरोसिस विकसित होती है उन्हें भी लीवर के प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। 6 माह तक मद्य-त्याग एवं लक्षित समस्याओं के उपचार से कुछ रोगियों की अवस्था में अर्थपूर्ण सुधार दिखार्इ देता है एवं ऐसे रोगी बिना लीवर के प्रत्यारोपण ही लंबी अवधी तक जीवित रह सकते हैं। जिन रोगियों में लीवर के रोग की अन्त्य अवस्था में लंबी अवधि तक किये गए मद्य-त्याग तथा औषधीय चिकित्सा स्वास्थ्य को पुर्नस्थापित करने में अक्षम रहते हैं,उनमें लीवर -प्रत्यारोपण ही उपचार शेष रहता है।
बच्चों में लीवर -प्रत्यारोपण का सबसे सामान्य कारण बीलियरी अटरीसिया है। बीलियरी अटरीसिया नवजात शिशुओं में एक प्रकार की दुर्लभ अवस्थिति होती है जिसमें लीवर एवं छोटी आंत मे मध्य समन्वयक पित्त नलिका या तो अवरुद्ध या अनुपस्थित होती है। पित्त नलिकाएं, वे नलिकाएं होती हैं जो पित्त को यकृत से बाहर ले जाती हैं, इस बीमारी में गायब या क्षतिग्रस्त होती हैं, और पित्त की बाधा सिरोसिस का कारण बनती है। भोजन को पचाने में पित्त मदद करता है। अगर इस अवस्था को समय रहते पहचान नहीं लिया जाता तब यह स्थिति लीवर की अक्षमता को प्राप्त होती है। इसका अवस्था के होने का कारण अभी तक ज्ञात नही है। इसको एक मात्र कारगर उपचार कुछ शल्यक्रियाएं अथवा लीवर का प्रत्यारोपण ही हैं।
प्रत्यारोपण के अन्य कारणों में लीवर का कैंसर, लीवर का सुसाध्य ट्यूमर एवं आनुवांशिक रोग होते हैं।
लीवर के प्रत्यारोपण के लिए उम्मीदवारों का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है?
लीवर के प्रत्यारोपण की उपयुक्तता का निर्धारण करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों द्वारा अवलोकन आवश्यक होता है। इसमें आपकी चिकित्सीय इतिवृत एवं भांति प्रकार की जाँच सम्मिलित होती हैं। प्रत्यारोपण दल आपका रक्त परीक्षण, एक्स-रे, एवं अन्य जाँच के क्रियांवयन द्वारा यह निर्धारण करेंगे कि क्या आपको प्रत्यारोपण की आवश्यकता है या क्या प्रत्यारोपण सुरक्षित ढ़ग से पूरा किया जा सकता है। आपके स्वास्थ्य के अन्य पहलू जैसे कि आपका हृदय,फेफड़े, लीवर , प्रतिरक्षी तंत्र एवं मानसिक स्वास्थ्य का परीक्षण किया जाएगा ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या आप शल्यक्रिया के लिए सबल हैं।
क्या लीवर समस्या से पीड़ित किसी भी रोगी में प्रत्यारोपण किया जा सकता है?
आप प्रत्यारोपण नहीं करा सकते यदि निम्न में से किसी से भी आप ग्रसित हैं।
- शरीर के किसी भी भाग में कैंसर का होना
- हृदय , फेफड़े या स्नायु-तंत्र में किसी गंभीर रोग का होना
- मद्यपान या अवैद्य मादक पदार्थ का दुर्पयाग
- क्रियाशील गंभीर संक्रमण का होना
- चिकित्सक द्वारा प्रदत्त अनुदेशों के क्रियांवयन में असमर्थता
प्रत्यारोपण का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है?
प्रत्यारोपण का निर्धारण संबद्ध रोगी की देख-भाल में सम्मिलित सभी व्यक्तियों से, डॉक्टरों से एवं रोगी के परिवार के सदस्यों से विचार-विमर्श कर के लिया जाता है। रोगी एवं उसके पारिवारिक सदस्यों का मत आवश्यक होता है तथा यह महत्वपूर्ण है कि वे प्रत्यारोपण से संबद्ध खतरों और लाभ को भलि भांति समझते हैं।
एक नए लीवर की प्राप्ति में कितना समय लगता है?
अगर आप लीवर प्रत्यारोपण के लिए एक सक्रिय प्रार्थक समझे जाते हैं तो आपका नाम प्रतीक्षा सूची में लिख दिया जाता है। रोगियों को रक्त प्रकार, शरीर के आकार एवं चिकित्सीय अवस्था(वे कितने बीमार हैं।) के आधार पर सूचीबद्ध किया जाता है। हर रोगी को तीन प्रकार की(क्रिएटिनीन,बिलिरुबिन तथा आर्इ.एन.आर )रक्त जाँच के अनुसार प्राथमिकता संबद्ध अंक दिया जाता है।
इस अंक को वयस्कों में एम.र्इ.एल.डी ( अन्त्य अवस्था की लीवर व्याधि का प्रतिरूप) तथा बच्चों में पी.र्इ.एल.डी ( शिशु अवस्था की लीवर व्याधि) स्कोर के नाम से जाना जाता है।
जिन रोगियों में र्इ.एस.टी स्कोर अधिक होता है उन्हें प्रत्यारोपण में प्राथमिकता दी जाती है। जैसे जैसे वे अधिक बीमार होते जाते हैं उनका स्कोर बढ़ता जाता है एवं उनकी प्राथकमकता बढ़ती जाती है जिससे वे रोगी जो सबसे अधिक बीमार होते हैं उनका प्रत्यारोपण सर्वप्रथम किया जाता है। यह संभव होता है कि लीवर की उपलब्धता का पूर्वानुमान लगाया जा सके। प्रतीक्षा सूची में आपकी क्रम संख्या के बारे में विमर्श हेतु आपके प्रत्यारोपण संयोजक हमेशा उपलब्ध रहते हैं। जब तक आप नए लीवर का इंतजार करते हैं तब तक आगामी शल्यक्रिया में सबल बने रहने के लिए आपके डॉक्टर के साथ विमर्श करना ही सर्वोत्तम रहेगा । नए लीवर की देख-भाल हेतु आप सीखना आरंभ कर सकते हैं।
प्रत्यारोपण के लिए उपयोग होने वाले लीवर का स्रोत क्या है?
लीवर प्रत्यारोपण के लिए दो विकल्प होते हैं: जीवित प्रदाता प्रत्यारोपण एवं मृत प्रदाता प्रत्यारोपण । जीवित प्रदाता लीवर प्रत्यारोपण अन्त्य चरण वाले लीवर के कुछ रोगियों हेतु एक विकल्प होता है। इस प्रक्रिया में किसी स्वस्थ प्रदाता के लीवर में से एक अनुभाग को निकाल कर प्रापक में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। दोनो ही दाता एवं प्रापक के लीवर कुछ ही हफ्तों में पुन: सामान्य आकार प्राप्त कर लेते हैं।
प्रदाता जो कि रोगी का कोर्इ सहोदर या रक्त संबंधी , संबंधी ,जीवनसाथी या मित्र हो सकता है उसको व्यापक चिकित्सीय एवं मनोवैज्ञानिक अवलोकन से गुजरना होगा जिससे शल्यक्रिया से संबद्ध खतरे को न्यून किया जा सके। उपयुक्त प्रदाता के चुनाव के लिए रक्त प्रकार एवं शरीर का आकार निर्णनायक घटक होते हैं। किसी भी लीवर प्रत्यारोपण के पूर्व सभी जीवित प्रदाताओं एवं उपलब्ध लीवरों की जाँच की जाती है। जाँच से यह सुनिश्चित होता है कि लीवर स्वस्थ है, आपके रक्त प्रकार से मेल खाता है एवं सही आकार का भी है जिससे वह शरीर में कार्य करने हेतु सर्वोच्च अवसथा प्राप्त करता है।
जीवित प्रदाता प्रत्यारोपण के लिए लीवर प्रापक को प्रत्यारोपण प्रतीक्षा सूची में सक्रिय होना चाहिए। प्रत्यारोपण की उत्तम सफलता के लिए उनका स्वास्थ्य आवश्यकतानुसार स्थिर होना चाहिए। मृत प्रदाता प्रत्यारोपण में, प्रदाता किसी दुर्घटना, ब्रेन-हैमरेज़ या सिर में लगी किसी चोट का शिकार हो सकता है। वह प्रदाता जिसका हृदय अभी भी धड़क रहा हो लेकिन उसके दिमाग ने कार्य करना बंद कर दिया हो। ऐसे व्यक्ति को विधिक रूप से मृत माना जाता है क्योंकि उसके मस्तिश्क ने स्थायी अथवा अपरिवर्तनीय रूप से कार्य करना बंद कर दिया होता है। इस अवस्था में प्रदाता प्राय: ही गहन चिकित्सीय देख-भाल युनिट में होता है। लीवर को मृत प्रदाता के निकटतम संबंधी की अनुज्ञा द्वारा दान कर दिया जाता है। संपूर्ण लीवर की प्राप्ति उन प्रदाताओं द्वारा होती है जिनकी मृत्यु तुरंत ही हुर्इ हो। इस प्रकार के प्रदाता को कैडावेरिक दाता कहा जाता है। मृत प्रदाता की पहचान एवं उसकी मौत के कारण को गुप्त ही रखा जाता है।
क्या प्रदाता एवं प्रापक का मिलान ऊतक प्रकार, लिंग, उम्र आदि के आधार पर किया जाता है?
नहीं,लीवर प्रत्यारोपण के लिए एक मात्र यही मिलान करना होता है कि वे दोनो आवश्यक रूप से समान शरीर के आकार वाले, एवं संयोज्य रक्त प्रकार के होने चाहिए। अन्य किसी भी प्रकार का मिलान की अनिवार्यता नहीं होती है।
लीवर दान करना सुरक्षित है?
लीवर दान करना पूर्णत: सुरक्षित होता है। ऐसा इस प्रकार संभव होता है क्योंकि लीवर आरक्षित पुनर्सृजन की असीम क्षमता के साथ ही अपनी सामान्य आकार को प्राप्त कर लेता है। प्रदाता को किसी भी प्रकार से लंबी अवधि के दुष्प्रभाव ग्रसित नहीं करते हैं एवं उसको 2 या 3 हफ्तों से अधिक के लिए अन्य दवाएं नहीं लेनी पड़ती हैं तथा एक माह के भीतर ही वह सामान्य जीवनशैली को पुन: आरंभ कर सकता है। वह श्रमसाध्य गतिविधियों (शारीरिक व्यायाम) को 3 माह में फिर से आरंभ कर सकता /सकती है।
शल्यक्रिया के पहले एवं उसके उपरांत कौन –कौन से प्रमुख जोखिम होते हैं?
शल्यक्रिया के पहले , सबसे प्रमुख खतरा यही होता है कि लीवर की व्याधि में किसी प्रकार की विकट जटिलता उत्पन्न होने से प्रापक शल्यक्रिया के लिए अनुपयुक्त हो जाए। लीवर प्रत्यारोपण में अन्य सभी प्रमुख शल्यक्रियाओं जैसे खतरे आम होते हैं। इसके अतिरिक्त क्षतिपूर्तित लीवर को निकालने में और उसको प्रदत्त लीवर से प्रतिस्थापित करने में कुछ तकनीकी समस्याएं हो सकती हैं। सबसे आम एवं प्रमुख खतरा जिसका सामना रोगियों को करना पड़ता है वह कुछ समय के लिए लीवर का कार्य न करना होता है। शल्यक्रिया के तुरंत बाद ही रक्त-स्राव, प्रत्यारोपित लीवर का ठीक से कार्य नहीं करना, एवं संक्रमण कुछ प्रमुख खतरे होते हैं। प्रापक को आगामी कर्इ हफ्तों तक लीवर के अस्वीकरण के लक्षणों के लिए ध्यानपूर्वक निगरानी में रखा जाता है।
अस्पताल में क्या होता है?
आपके लिए जब किसी लीवर को चिन्हित कर लिया जाता है तब आपको शल्यक्रिया के लिए तैयार किया जाएगा। आप जब अस्पताल में आएंगे तब शल्यक्रिया के पूर्व आपकी अतिरिक्त रक्त जाँचें, इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम एवं आपकी छाती का एक एक्स-रे लिया जाएगा। ऐसी स्थिति में जब आपका नया लीवर किसी जीवित प्रदाता द्वारा प्रदत्त है तब आप दोनों पर शल्यक्रिया एक साथ की जाएगी। अगर आपका नया लीवर किसी ऐसे प्रदाता से प्रदत्त है जिसकी मृत्यु अभी हाल में ही हुर्इ है तब आपकी शल्यक्रिया तभी आरंभ की जाएगी जब नया लीवर अस्पताल में पहुँच जाएगा।
शल्यक्रिया में कितना समय लगेगा ?
लीवर प्रत्यारोपण में सामान्यत: 4 से 14 घण्टे लग जाते हैं । शल्यक्रिया करते हुए सर्जन आपके लीवर को निकाल लेते हैं और दाता के लीवर से उसे प्रत्यारोपित कर देते हैं । सर्जन आपके रोगग्रस्त लीवर को निकालने के पहले उसे पित्त नलिकाओं और रक्त वाहिनियों से पृथक कर देते हैं। लीवर में जाने वाले रक्त को अवरुद्ध कर दिया जाता है या मशीन द्वारा शरीर के अन्य भागों में वापस भेज दिया जाता है । सर्जन स्वस्थ लीवर को स्थान पर रख देता है और पित्त नलिकाओं और रक्त वाहिनियों से लीवर को दुबारा जोड़ देता है । अब रक्त आपके नए लीवर में प्रवेश करेगा । प्रत्यारोपण की शल्यक्रिया प्रमुख प्रक्रिया है इसलिए आपके सर्जन को आपके शरीर में अनेक ट्Óूब लगाने की आवश्यकता पड़ती है । ये ट्यूब शल्यक्रिया के दौरान और उसके बाद भी कुछ दिनों तक आपकी कुछ शारीरिक गतिविधियों के लिए आवश्यक हैं ।
आरोग्य प्राप्ति की समयावधि में क्या होता है ?
आरम्भ में सघन देखभाल कक्ष में आपके शारीरिक प्रकायोर्ं और लीवर की सावधानी पूर्वक देखभाल की जाती है । एक बार जब रोगी को वॉर्ड में भेज दिया जाता है रक्त की जाँच इत्यादि की आवृत्ति भी कम हो जाती है , खाना खाने की अनुमति दे दी जाती है और मांसपेशियों की शक्ति को पुन: प्राप्त करने के लिए फिजियोथेरेपी की सलाह दी जाती है । दवाइयाँ भी अस्वीकृति को रोकने के लिए नसों से दी जाती हैं और बाद में मुँह से दी जाती हैं । प्रत्यारोपण के समय लीवर की कार्य क्षमता और अस्वीकृति के किसी के किसी लक्षण के लक्षण को जाँचने के लिए लगातार परीक्षण किया जाता है ।
मैं घर कब जा पाऊँगा ?
लीवर प्रत्यारोपण के बाद दो या तीन हफ्ते तक अस्पताल में रहना पड़ता है । नया लीवर कैसे काम कर रहा है और संभावित जटिलताओं के कारण कुछ रोगी इसके पहले भी घर जा सकते हैं और कुछ को अधिक समय भी लग सकता है । आपको दोनों ही सम्भावनओं के लिए तैयार रहना चाहिए । जब एक बार आप सघन देखभाल कक्ष से नर्सिंग फ्लोर पर ले आया जाता है तब आपको डिस्चार्ज मैनुअल दिया जाता है जिसमें यह समीक्षा की गर्इ रहती है कि घर जाने के पहले आपको क्या क्या जान लेना चाहिए । अस्पताल में ही आप धीरे धीरे खाना आरम्भ कर देते हैं । आप सबसे पहले आप साफ तरल पदार्थ से लेगें और फिर जब आपका नया लीवर कार्य करना आरम्भ कर देता है तब ठोस भोजन आरम्भ करते हैं । आप सीखेंगे कि अपना ध्यान कैसे रखना है , और अपने नए लीवर की रक्षा के लिए अपनी नर्इ दवाइयाँ कैसे लेनी हैं । जब आप नियमित रूप से ये सभी कार्य करने लगेंगे तब आप अपने स्वास्थ की देखभाल के महत्वपूर्ण प्रतिभागी बन जाएंगे । आप डिस्चार्ज होने के पहले अस्वीकृति तथा संक्रमण के लक्षण को समझने लगेंगे और यह भी समझने योग्य हो जाएंगे कि कब डॉक्टर को बुलाना आवश्यक है । अच्छे परिणाम के लिए आवश्यक है कि रोगी प्रत्यारोपण के बाद के लिए दिए गए परामर्श पर कायम रहे ।
लीवर प्रत्यारोपण के साथ कौन सी जटिलताएं जुड़ी रहती हैं ?
लीवर प्रत्यारोपण के बाद दो जटिल समस्याएं आम हैं , वे हैं अस्वीकृति और संक्रमण ।
अस्वीकृति क्या है ?
जब लीवर एक व्यक्ति(दाता से)से दूसरे व्यक्ति में (प्राप्तकर्ता) प्रत्यारोपित किया जाता है तो प्राप्तकर्ता का इम्यून सिस्टम वैसी ही प्रतिक्रिया को आरम्भ कर देता है जो किसी भी बाहरी तत्व के साथ करता है और बार बार होने वाली प्रतिक्रिया प्रत्यारोपित लीवर को क्षति पहुचाँती है । इस प्रक्रिया को ही अस्वीकृति कहते हैं । यह जल्दी-जल्दी (अक्यूट रिजेक्शन) हो सकता है और लम्बे समय के अन्तराल में (क्रॉनिक रिजेक्शन)। यह अस्वीकृति दिए गए लीवर और प्रत्यारोपण करने वाले रोगी में चाहे जितनी भी निकटता हो ,इसके बावजूद भी अस्वीकृति घटती है ।
आपके शरीर का प्राकृतिक रक्षातंत्र , आपकी प्रतिरोधक क्षमता उन सभी विदेशी तत्वों को नष्ट करने लगता है जिन्होंने आपके शरीर पर आक्रमण किया है । आपकी प्रतिरोधक क्षमता प्रत्यारोपित लीवर और अवांक्षित आक्रामक में अन्तर नहीं कर पाता जैसे वैक्टीरिया और वायरस । इसलिए हो सकता है कि आपकी प्रतिरोधक क्षमता आक्रमण करके नए लीवर को क्षति पहुँचाए । इसे ही अस्वीकृति का प्रकरण कहते हैं । 70 प्रतिशत लीवर प्रत्यारोपण के रोगियों में डिस्चार्ज के पहले ही किसी न किसी रूप में अस्वीकृति घटित होती है । इस प्रतिरोधक क्षमता के आक्रमण को रोकने के लिए अस्वीकृति रोधक दवा दी जाती है ।
अस्वीकृति को कैसे रोका जाए ?
लीवर के प्रत्यारोपण के उपरांत आपको इम्यूनोसप्प्रेसेंट दवाएं दी जाएंगी। इम्यूनोसप्प्रेसेंट आपकी प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर आपके शरीर द्वारा नए लीवर की अस्वीकृति की संभावना को कम कर देती है। आपके शरीर द्वारा नए लीवर की अस्वीकृति को रोकने के लिए ये दवाएं आपके प्रतिरोधन तंत्र की कार्य-प्रक्रिया को धीमा या कमजोर कर देती हैं। इम्यूनोसप्प्रेसेंट दवाएं लीवर की अस्वीकृति से संबद्ध खतरों को काफी हद तक कम कर देती हैं जिससे नए अंग को संरक्षित एवं उसके प्रकार्यों को सुरक्षित किया जा सके।
यह दवा प्रापक के प्रतिरक्षी तंत्र को अवरुद्ध करके कार्य करती है ताकि वह नव-प्रत्यारोपित अंग का प्रतिरोध न करे । इसके लिए दवाओं की एक व्यापक शृंखला उपलब्ध है लेकिन वे भिन्न तरीकों से लीवर के अस्वीकृत किए जाने के खतरों का कम करती हैं। इनमें स्टीरॉÓड,साइक्लोस्पोरीन, टैक्रोलाइमस,सिरोलाइमस एवं माइकोफीनोलेट मोफेटिल जैसी दवाएं सम्मिलित हैं। आपको इन दवाओं को ठीक निर्देशानुसार सारी उम्र उपयोग करना होगा।
क्या इम्यूनोसप्प्रेसेंट दवाओं का कोर्इ दुश्प्रभाव होता है?
इम्यूनोसप्प्रेसेंट दवाएं किसी संक्रमण के प्रति रोगी की प्रतिरोधात्मक क्षमता को क्षीर्ण कर देतीं हैं एवं संक्रमण के उपचार को कठिन बना देती हैं। हालाँकि ये उपचार शरीर द्वारा लीवर की अस्वीकृति को रोकने के लिए किए जाते हैं, लेकिन ये शरीर द्वारा कुछ विशाणुओं,कीटाणुओं एवं कवक के प्रति उसकी प्रतिरोधात्मक क्षमता को भी कम कर देती हैं। जो भी जीव सामान्य रूप से रोगियों पर प्रभाव डालती हैं उनको इन दवाओं द्वारा छादित किया जाता है । हालाँकि संक्रमित व्यक्तियों से किसी भी प्रकार के संपर्क से बचना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
क्या लीवर प्रत्यारोपित किए जाने वाले रोगियों को इन दवाओं को अपनी सारी उम्र लेना पड़ता है?
आमतौर पर इसका उत्तर हाँ होता है। हालाँकि जैसे जैसे शरीर प्रत्यारोपित लीवर के साथ समंजित होता है वैसे वैसे लीवर की अस्वीकृति को रोकने के लिए दवाओं की आवश्यक मात्रा घटार्इ जा सकती है। ऐसे रोगी भी हैं जिन्हें सफलतापूर्वक इन दवाओं से पृथक किया जा चुका है। शोधकर्ता इन उदाहरणों में सफलता के कारणों को खोजने का प्रयास कर रहे हैं।
अस्वीकृति के संकेत एवं लक्षण क्या हैं?
लीवर के प्रत्यारोपण की अस्वीकृति प्रकट करने वाले संकेत एवं लक्षण निम्नलिखित हैं:
- 100°C अधिक बुखार का होना
- थकान या अत्यधिक निंद्रा
- रुग्णता
- सिरदर्द
- उदर मे सूजन, कोमलता या दर्द
- भूख का कम लगना
- पीलिया (त्वचा या आँखों का पीलापन)
- मूत्र का गहरा भूरा होना
- खुजली
- मिचली
उपरोक्त लक्षणों में से अस्वीकृति के लिए कोर्इ भी विलक्षण नहीं है; लेकिन वे इतने महत्वपूर्ण अवश्य हैं कि लक्षित होने पर आपको डॉक्टर से तुरंत ही कॉल करना चाहिए ताकि वे निर्धारण कर सकें कि इस स्थिति में अन्य किसी प्रकार के अनुवीक्षणया इसको फिलहाल देख-भाल की आवश्यकता है।
चूँकि अस्वीकृति के लक्षण पुर्णत: अलख रह सकते हैं अत: प्रत्यारोपण के उपरांत समय समय पर की जाने वाली रक्त जाँच ही आदर्श रणनीति होती है जो कि अस्वीकृति के प्रारंभिक संकेत प्रदान करते हैं। डॉक्टर आपके रक्त की जाँच लीवर से संबद्ध एन्जाइम के विश्लेशण करने के लिए कर सकते हैं जो कि अस्वीकृति के कुछ प्रारंभिक संकेत होते हैं। आरंभ में यह जाँच प्रत्येक दिन की जाएगी। लीवर प्रत्यारोपण के एक माह के बाद से यह जाँच प्रत्येक हफ्ते में एक बार की जाती है। धीरे-धीरे समय के बीतने पर इसके किए जाने के समय अंतराल को बढ़ा दिया जाता है। जब कभी अस्वीकृति की शंका हो तब उसका निराकरण बाओप्सी द्वारा की जा सकती है। कुछ उदाहरणों में जब अस्वीकृति की पुख्ता आशंका हो तब बाओप्सी आवश्यक नहीं होती है। अन्य सभी स्थितियों में बाओप्सी अनिवार्य होती है। बाओप्सी के लिए लीवर के एक छोटे से टुकड़े को डॉक्टर माइक्रोस्कोप द्वारा देखते हैं।
कौन सी समस्या प्रत्यारोपण को बाधित कर सकती हैं?
सर्वप्रथम जिस समस्या के कारण प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ी थी, रोगियों को वही कारण सामान्य रूप से कष्ट देता है। इसके अलावा यदि शल्यक्रिया कि पहले प्रापक हेपाटाइटिस सी. विषाणु द्वारा संक्रमित था तब यह उसके प्रत्यारोपण को बाधित कर सकता है। अन्य समस्याएं निम्न प्रकार हैं-
- लीवर के अंदर या बाहर जाने वाली रक्त वाहिनियों में अवरोध
- आंतो मे पित्त का संचार करने वाली नलिकाओं की क्षति
अगर प्रत्यारोपण काम न करे?
आशावादी दृश्टिकोण की आवश्यकता है। अधिकतर लीवर प्रत्यारोपण की शल्यक्रियाएं सफल होती हैं। लगभग 80 से 90 प्रतिशत रोगियों में प्रत्यारोपित लीवर 1 साल के बाद भी कार्य कर रहे हैं। कभी कभी लीवर को पुर्णत: क्रियाशील होने में काफी समय लगता है। लीवर के विद्यात के कर्इ स्तर होते हैं, हालाँकि एवं त्रुटिपूर्ण प्रकार्य के बाद भी रोगी काफी हद तक स्वस्थ रहेगा। किसी प्रकार की जटिलता के होने पर जैसे कि नव-प्रत्यारोपित लीवर कार्य नहीं करता है या अपका शरीर उसको अस्वीकृत कर देता है तब उस स्थिति में आपके चिकित्सक एवं प्रत्यारोपण दल निर्धारित करेगा कि नश्ट होते लीवर को दूसरी या तीसरी बार पुन: प्रत्यारोपित करना होगा। दुर्भाग्यवश गुदोर्ं में डाइलिसिस जैसा लीवर के लिए कोर्इ भी उपचार उपलब्ध नहीं है। शोधकर्ता उन रोगियों को जीवित रखने का प्रयास कर रहें हैं जो लीवर के धीरे धीरे बंद होती अवस्था में किसी नए लीवर का इंतजार कर रहें हैं ।
अस्पताल छोड़ने के बाद किस प्रकार मैं अपने लीवर की देखभाल कर सकता हूँ ?
अस्पताल में प्रत्यारोपण केंन्द्र छोड़ने के बाद आपको समय समय पर अपने डॉक्टर से मिल के सुनिश्चित करना होगा कि आपका लीवर ठीक प्रकार से कार्य कर रहा है। आपको नित्य ही रक्त जाँच करानी होगी यह पता लगापे के लिए कि कहीं आपका लीवर अस्वीकृति ,संक्रमण या रक्त वाहिनियों या पित्त नलिकाओं से संबद्ध अन्य किसी समस्या द्वारा क्षतिग्रस्त तो नहीं हो रहा है। आपको ध्यान देना होगा कि आप बीमार व्यक्तियों से दूर रहें एवं किसी भी प्रकार की बीमारी को अपने चिकित्सक को तुरन्त ही बताएं। गृह देखभाल द्वारा कोशिश की जाती है कि नित्य गतिविधियों के किए जाने के लिए सहनशक्ति विकसित की जा सके एवं शल्यक्रिया के पूर्व की स्वास्थ्य पुन: प्राप्त किया जा सके। यह एक लंबी अवधि की एवं धीमी प्रक्रिया है तथा इसमें साधारण गतिविधियाँ होती हैं।
आरंभ में पैदल चलने में सहायता की आवश्यकता हो सकती है। खांसना एवं गहरी सांस लेना फेफड़ों के स्वास्थ एवं निमोनिया की रोकथाम के लिए अति महत्वपूर्ण है। आहार में पहले आइस चिप्स और बाद में साफ तरल एवं अंतत: ठोस पदार्थ दिया जाता है। यह अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि सभी खाद्य समूहों के साथ सुसंतुलित आहार ग्रहण किया जाए। 3 से 6 माह के बाद अपने सामान्य कायोर्ं को रोगी कर सकता है अगर उसको लगता है कि वह इसके लिए तैयार है एवं उसके प्रधान चिकित्सक ने उससे संगद्ध ऐसी अनुमति प्रदान की है। स्वस्थ भोजन तथा व्यायाम के अतिरिक्त आपको मद्यपान नहीं करना होगा विशेषतःअगर आपके लीवर के खराब होने को मुख्य कारण मद्यपान ही था।
किसी भी प्रकार की औषधि के उपयोग के पहले और विशेष रूप से जिनको आप बिना किसी चिकित्सीय पर्चे के खरीद सकते हैं , आपको डॉक्टर से यह सुनिश्चित करना होगा कि क्या वे आपके उपयोग के लिए सुरक्षित हैं। यह सर्वाधिक आवश्यक है कि आप नए लीवर की देखभाल हेतु ध्यानपूर्वक अपने डॉक्टर के निर्देशों का पालन करें।
क्या मैं अपनी दैनिक गतिविधियों पर वापस लौट सकता हूँ?
यकीनन। एक सफल लीवर प्रत्यारोपण के बाद अधिकतर लोग अपने दैनिक कार्यो को करने लगते हैं। अपनी शारीरिक ताकत वापस पाने में आपको समय लग सकता है और यह निर्भर करता है कि प्रत्यारोपण के पहले आप कितने बीमार थे । आपके डॉक्टर यह बता पाएंगे कि आपके स्वास्थ्यलाभ में कितना समय लगेगा।
- काम– स्वास्थ्य लाभ के बाद अधिकतर व्यक्ति अपने कार्यो पर वापस लौट जाते हैं
- आहार– अधिकतर व्यक्ति प्रत्यारोपण के पूर्व वाले आहार को वापस खाने लगते हैं। कुछ दवाओं से वनज में वृद्धि हो सकती है , वहीं अन्य द्वारा मधुमेह हो सकता है या आपका कलस्ट्राल बढ़ सकता है। भोजन का नियोजन एवं संतुलित निम्न वसा युक्त आहार आपको स्वस्थ रख सकता है। लीवर प्रत्यारोपित किए गए रोगियों में पानी के ठहरने के कारण वनज बढ़ने की प्रवित्ति होती है। उनको सलाह दी जाती है कि इस पानी के धारण को कम या खत्म करने के लिए नमक की मात्रा को घटा दें।
- व्यायाम– लीवर के सफल प्रत्यारोपण के उपरांत अधिकांश लोग शारीरिक गतिविधियों को संपन्न कर सकते हैं।
- यौन क्रिया– लीवर के सफल प्रत्यारोपण के उपरांत अधिकांश लोग सामान्य यौन क्रिया को संपादित कर सकते हैं। औरतो के लिए यह ध्यान रखना आवश्यक है कि वे प्रत्यारोपण के एक वर्ष बाद तक गर्भ धारण न करें। आपको प्रत्यारोपण के उपरांत यौन क्रिया एवं प्रजनन के संदर्भ में अपने लीवर प्रत्यारोपण दल से वार्ता करनी चाहिए।
किसी नर्इ गतिविधि आरंभ करने के पहले अपने डॉक्टर से किसी भी स्पष्टीकरण के लिए संपर्क करें।