हम सब जानते हैं कि शरीर की हड्डियां बेशुमार प्रोटीन के रेशे द्वारा बनी होती है और इसके ऊपर विटामिन D की सहायता से कैल्शियम जमा होता है। ये प्रक्रिया लगातार चलती रहती है और हमारी हड्डियों को सुदृढ़ता प्रदान करती है
बढ़ती उम्र की वजह से यह प्रोटीन के रेशे पतले होने शुरू हो जाते हैं और इनकी मात्रा भी कम होनी शुरू हो जाती है । इसका मूल कारण बढ़ती उम्र तो है ही लेकिन साथ साथ कम व्यायाम करना , कम चलना और ठीक प्रकार का प्रोटीन युक्त खाना न खाना भी इसका कारण बन जाते हैं हड्डी कमज़ोर होने से ऑस्टियोपोरोसिस हो जाता है या यूँ कहें कि हड्डी खोखला होनी शुरू हो जाती है। इसी प्रकार से विटामिन D की कमी के कारण , क्योंकि , हड्डी पर कैल्शियम जमा नहीं हो पाता, हड्डी कमज़ोर हो जाती है और इस स्थिति को ऑस्टियोमलेशया कहते हैं बढ़ती उम्र के कारण कमज़ोर हड्डी का सबसे ज़्यादा प्रभाव देखने में आता है हमारी रीढ़ की हड्डी पर।
रीढ़ की हड्डी की बनावट
पहले हम ये समझ लें , कि आख़िर हमारी रीढ़ की हड्डी की बनावट क्या है। रीढ़ की हड्डी एक प्रकार से एक मनके के ऊपर एक मनका है जो एक दूसरे से बड़े ही परिष्कृत एवं महीन तरीक़े से जुड़े रहते हैं। दो मनके यानी की वरटिबरा के बीच डिस्क होती है । यही वजह है कि हमारी रीढ़ की हड्डी के द्वारा हम चारों तरफ़ झुक एवं घूम सकते हैं हालाँकि रीड की हड्डी में एक बहुत ही महत्वपूर्ण नाज़ुक सपाइनल कॉर्ड अथवा सुषुम्ना नाड़ी सुरक्षित रहती है हमारे गर्दन में सात , कमर में बारह और निचले हिस्से में पाँच वरटिबरा होते हैं जिसको मिलकर रीढ़ की हड्डी बनती है
हड्डी कमज़ोर होने का कुप्रभाव
हड्डी कमज़ोर होने अथवा ऑस्टियोपोरोसिस के कारण रीड की हड्डी केवल शरीर के वज़न के कारण ही सामने की ओर झुकनी शुरू हो जाती है। यह क्रिया अक्सर बहुत धीमे धीमे होती है और यही कारण है कि हम सबने देखा होगा कि बढ़ती उम्र के साथ व्यक्ति सामने की ओर झुक जाता है। पिचकती हुई रीड की हड्डी अथवा वरटिबरा , वृद्धावस्था में लगातार , धीमी धीमी या कभी कभी तेज , कमर में दर्द का कारण बन जाती है। शुरू शुरू में तो ये क्रिया इतनी धीमी होती है कि समझ में नहीं आता और व्यक्ति यही सोचता रहता है कि यह छोटी मोटी कमर की दर्द तो बुढ़ापे की वजह से है और कोई कारण नहीं। आरंभ में, कई बार तो, सारी जाँच करने के बाद भी, इसका निदान करना कठिन हो जाता है।
दूसरी ओर , कई बार रीढ़ की हड्डी अचानक , हल्की सी चोट लगने से या कई बार बिना चोट के ही पिचक जाती है । इसे एकूट वर्टिबरल कंप्रेशन फ्रैक्चर ( VCF) कहते हैं। इस स्थिति में अचानक तेज दर्द हो सकता है और व्यक्ति का उठना बैठना भी दूभर हो जाता है एक समय में एक से ज़्यादा मनका या वरटिबरा भी प्रभावित हो सकता है
कमर का वह भाग जहां ऊपर और नीचे का हिस्सा मिलता है , अक्सर उस जगह की रीढ़ की हड्डी पिचकने , अथवा कोमपरेशन फ्रैक्चर सेज़्यादा प्रभावित होती है याद रहे कि रीढ की हड्डी अन्य कारणों से भी कमज़ोर हो सकती है और पिचक सकती है। उदाहरण के तौर पर कई प्रकार के कैंसर या इंफेक्शन की वजह से भी रीड की हड्डी इस प्रकार से प्रभावित हो सकती है ।यह अत्यंत आवश्यक है कि ठीक प्रकार से जाँच करके यह सुनिश्चित कर लिया जाए कि क्या ये पिचकी हुई हड्डी केवल ऑस्टियोपोरोसिस के कारण है या कहीं इसका कोई और गंभीर कारण तो नहीं !
क्या जाँच करवायें?
बढ़ती उम्र के साथ यदि लगातार कमर में दर्द रहे तो , डॉक्टर की सलाह से, खून की जाँच , एक्सरे और बोन डेनसिटी की जाँच करवा लेनी चाहिए। कई बार इसमें MRI करने की भी आवश्यकता पड़ती है
MRI से यह भी पता लग सकता है कि ये रीढ़ की हड्डी का पिचकना या कंप्रेशन फ्रैक्चर ताज़ा है यानी कि पिछले पिछले कुछ दिनों हफ़्तों में हुआ है या कि पुराना है जो कि महीनों या सालों पुराना है । यह जानना बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इन दोनों स्थितियों मेंइलाज काफ़ी भिन्न है MRI से यह भी ज्ञात हो जाता है की कहीं पिचकी हुई रीढ़ की हड्डी , कैंसर या इंफेक्शन से प्रभावित तो नहीं ।
रीढ की पिचकी हड्डी अथवा कंप्रेशन फ्रैक्चर का इलाज।
बिना आपरेशन अधिकतर लोगों में इसका इलाज बिना किसी ऑपरेशन के किया जा सकता है। कुछ हफ़्ते आराम करें । आरंभ में कुछ हफ़्ते बिस्तर में रहने की आवश्यकता पड़ सकती है। कमर को सुरक्षित रखने के लिए एक विशेष प्रकार की पेटी अथवा बेल्ट पहने । डॉक्टर की सलाह के साथ दर्द की दवाई लें यदि हड्डी कमज़ोर है तो उसके लिए भी ऑस्टियोपोरोसिस के लिए विशेष प्रकार की दवाई ले लें यदि विटामिन D की कमी है तो कैल्शियम और विटामिन D भी ज़रूर ले।
पहले कुछ हफ़्ते , यदि बिस्तर में आराम करने की आवश्यकता है तो इस बात का ज़रूर ध्यान रखें कि अक्सर धीरे धीरे करवट बदलते रहें तांकि बेड सोर इत्यादि न हो जाए । हाथों , पैरों एवं छाती की के धीरे धीरे व्यायाम ज़रूर करते रहें ताकि कोई और विषमता या कामपलीकेशन न खड़ी हो जाए ।
कभी कभी बिना चीरे के ऑपरेशन की आवश्यकता
अधिकतर लोगों में ऑपरेशन की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती । लेकिन यदि दर्द में आराम न आए तो बिना चीरे के एक छोटा सा ऑपरेशन करके राहत दी जा सकती है। बिना बेहोश किए और बिना चीरा दिए , लगातार एक्सरे नियंत्रण में , एक छोटी सी सुई को रीढ़ की हड्डी में डालकर उसके अंदर एक विशेष प्रकार का सीमेंट भरा जा सकता है ताकि चरमराती हुई हड्डी को सहारा दिया जा सके और रोगी को दर्द से राहत दिलायी जा सके। इसे वरटिबरोपलासटी या काईफोपलासटी कहते हैं।
कभी कभी , कुछ विशेष परिस्थितियों में रीढ़ की हड्डी में स्क्रू लगाकर उसे जोड़ने की आवश्यकता पड़ सकती है कोशिश यही रहती है कि जल्दी से जल्दी रोगी को बिस्तर से बाहर निकाला जाए ताकि लंबे समय तक बिस्तर में पड़े रहने वाली विषमता अथवा कॉम्पिटिशन से बचा जा सके
वृद्धावस्था में रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर से बचाव
हम जानते हैं कि बढ़ती उम्र के कारण रीढ़ की ऑस्टियोपोरोसिस के कारण रीढ़ की हड्डी में कमज़ोरी आ सकती है । इसलिए ये आवश्यक हैं की 60 साल की उम्र के बाद अपनी बोन डेनसिटी की जाँच करवा लें और यदि हड्डी में कमज़ोरी प्रदर्शित होती है तो डॉक्टर से मिलकर इसके लिए विशेष प्रकार की दवाई ले लें जो बहुत सरल है और हड्डी को सुदृढ़ करने में कारगर सिद्ध होती है ।
कैल्शियम और विटामिन D का भी ध्यान रखें
अच्छी ख़ुराक ले और प्रोटीन की मात्रा का ध्यान रखें
एक और बेहद ज़रूरी बात ये है कि व्यायाम ज़रूर करें। सैर और योग को अपनी दिनचर्या का भाग बना लें
व्यायाम से न केवल मांसपेशियों को ताक़त मिलती है बल्कि हड्डियां भी सुदृढ़ होती है और ऑस्टियोपोरोसिस एवं फ्रैक्चर से बचा जा सकता है किसी ने ठीक कहा है कि चलना जीवन है और जीवन चलना है। सैर अवश्य करें !
डॉ। यश गुलाटी से सलाह लेने के लिए यहां क्लिक करें